रतन टाटा के जीवन में कई ऐसी घटनाएँ हैं जो उनकी विनम्रता और दृढ़ संकल्प को दर्शाती हैं, लेकिन 1999 की एक घटना खासतौर पर उनकी नेतृत्व क्षमता और धैर्य का प्रतीक है। उस समय, टाटा मोटर्स ने पहली बार अपनी यात्री कार “इंडिका” लॉन्च की थी। यह टाटा समूह के लिए एक बड़ा कदम था, क्योंकि इससे पहले टाटा मोटर्स सिर्फ व्यावसायिक वाहनों के क्षेत्र में सक्रिय थी।
हालांकि, बाजार में शुरुआती प्रतिक्रिया निराशाजनक रही। इंडिका की बिक्री उम्मीद से काफी कम थी और इसे लेकर आलोचनाएं भी हो रही थीं। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि रतन टाटा ने टाटा मोटर्स को बेचने का विचार किया।
उन्होंने अमेरिका की एक प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड से संपर्क किया। फोर्ड के साथ बैठक के दौरान रतन टाटा और उनकी टीम को फोर्ड के अधिकारियों की ओर से काफी कठोर और अपमानजनक बातें सुननी पड़ीं। फोर्ड के एक उच्च अधिकारी ने कहा, “आपको कार बनाने का कोई अनुभव नहीं है, आप इस व्यवसाय में क्यों हैं? हम आपकी कंपनी खरीदकर आप पर एहसान कर रहे हैं।”
इस अपमानजनक टिप्पणी के बावजूद, रतन टाटा ने शांत रहकर बैठक पूरी की और भारत लौट आए। उन्होंने टाटा मोटर्स को बेचने का विचार छोड़ दिया और इसे सफल बनाने के लिए नई ऊर्जा के साथ काम शुरू किया।
कड़ी मेहनत और दूरदर्शिता के साथ, कुछ सालों में टाटा मोटर्स ने भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में अपनी पहचान बना ली। इंडिका धीरे-धीरे ग्राहकों की पसंद बनने लगी और कंपनी का व्यवसाय मजबूत हो गया।
2008 में फोर्ड को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, और उस समय उन्हें अपनी प्रतिष्ठित ब्रांड्स जगुआर और लैंड रोवर को बेचना पड़ा। इस बार, रतन टाटा ने फोर्ड से दोनों ब्रांड खरीदने का प्रस्ताव दिया। दिलचस्प बात यह है कि जब डील हुई, तो फोर्ड के अधिकारियों ने कहा, “आपने हमें बहुत बड़ी परेशानी से उबारा है।”
यह कहानी रतन टाटा के धैर्य, संकल्प और नेतृत्व की मिसाल है, जो हमें यह सिखाती है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, सही दृष्टिकोण और मेहनत से सफलता हासिल की जा सकती है।
जब की आज दिनांक 10 अक्टूबर 2024 को भारत ने एक अनमोल हीरा रत्न जी को को दिया, आज रत्न टाटा की का स्वर्गवास हो गया।आज उनकी याद में पूरा देश आज दुखी है।